खेल कूद इंसानी ज़िंदगी के लिए बहुत ही अहम है। खेलकूद से शरीर में चुस्ती-फुर्ती पैदा होती है और आदमी बिल्कुल स्वस्थ रहता है। इसके विपरीत जो लोग खेलकूद से दूर रहते हैं उनमें अधिकतर शारीरिक एवं मानसिक रूप से सुस्त, कमज़ोर और बीमार नज़र आते हैं।
यही कारण है कि इस्लाम में खेल-कूद को एक खास जगह दी गई है और नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम भी सहाबा किराम रजि़अल्लाहु अनहुम के बीच तरह-तरह के खेलों का आयोजन करते थे, जैसे:- घुड़सवारी, तीरंदाज़ी, कुश्ती और तलवार बाज़ी इत्यादि।
लेकिन प्रश्न यह है कि कौन से खेल खेले जाएं और किन खेलों से दूर रहा जाए? अर्थात खेल-कूद के बारे में इस्लाम का क्या दृष्टिकोण है?
इस्लाम में प्रत्येक तरह के खेल-कूद जाएज़ हैं। लेकिन इसके साथ ही कुछ नियमों और शर्तों को भी लागू किया गया जिनका पालन करना एक मुसलमान के लिए अनिवार्य है, और वह निम्नलिखित हैं:-
1. उस खेल-कूद के बारे में शरीयत में कोई हुरमत और मनाही न हो। जैसे :- जुवा , शतरंज, नर्दशीर (चौसर) और कबूतर बाजी आदि।
2. उस खेल-कूद के कारण अल्लाह और उसके बंदों के हुक़ूक़ की अदायगी में कोई रुकावट और कमी न आती हो।
3. उस खेल-कूद में किसी प्रकार का जुवा और सट्टा बाजी न हो।
4. वह खेल-कूद नमाज की पाबंदी और क़ुरान की तिलावत में आड़ (रुकावट) न बनता हो।
5. वह खेल-कूद मां- बाप , बीवी – बच्चे और दोस्त व अहबाब के हुक़ूक़ (अधिकार) की अदायगी में रुकावट न बनता हो।
6. उस खेल मेंं जीत का दारोमदार क़िस्मत के साथ-साथ इंसान की अपनी का़बिलियत व सलाहियत पर भी हो, कामयाबी और जीत केवल क़िस्मत या पांसा न, दाना और गोटी फेंकने पर न हो।
8. वह खेल हलाकत व बर्बादी की तरफ न ले जाती हो, और उस खेल में इंसान का सतर (खास अंग) ढका हुआ हो अर्थात वह नंगा न हो।
9. उस खेल-कूद में केवल पैसे और समय की बर्बादी न हो।
10. उस खेल-कूद से शरीर की वर्जिश होती हो और इंसान के अंदर सलाहियत व महारत भी पैदा होती हो। जैसे:- तीरंदाजी, घुड़सवारी, कबड्डी, तैराकी, क्रिकेट, बैडमिंटन, वालीबाल, फुटबॉल आदि।
यह इस्लाम में खेल कूद के कुछ नियम और कानून हैं जिनकी रोशनी में किसी भी खेल पर हलाल या हराम / जाएज़ या नाजायज़ होने का हुक्म आसानी से लगाया जा सकता है और प्रत्येक मुसलमान खुद भी उस खेल के बारे में शरीअत का हुक्म मालूम कर सकता है।
आजकल हमारे समाज में लूडो का खेल बहुत ज़्यादा खेला जा रहा है, और इस खेल को हर एक छोटा-बड़ा, मर्द-औरत, बूढ़ा-जवान बड़ी दिलचस्पी से खेलता है।। लेकिन क्या कभी हमने यह जानने की कोशिश की कि इस खेल के बारे में इस्लाम का क्या हुक्म है?
चूंकि खेलों में से कुछ खेल कूद जायज़ और कुछ खेल नाजायज़ और हराम हैं । इसलिए एक मुसलमान होने के नाते हमारे लिए ज़रूरी है कि हम इस खेल के बारे में इस्लाम का हुक्म मालूम करें।
जहां तक लूडो खेलने की बात है तो चूंकि यह इस ज़माने का एक नया खेल है इसलिए इसके बारे में स्पष्टता व सराहत के साथ शरीअत का कोई हुक्म तो मौजूद नहीं है लेकिन इसी प्रकार का एक खेल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के समय में भी मौजूद था और वह है “नर्दशीर” (चौसर), जिसके हराम और नाजायज़ होने के बारे में शरीअत का खुला हुक्म मौजूद है।
सही मुस्लिम में हजरत बुरैदह रजि़ अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि आप सल्लल्लाहू अलैेहि वसल्लम ने फरमाया:-
” مَنْ لَعِبَ بِالنَّرْدَشِيرِ فَكَأَنَّمَا صَبَغَ يَدَهُ فِي لَحْمِ خِنْزِيرٍ وَدَمِهِ “.(صحيح مسلم | كِتَابٌ : الشِّعْرُ | بَابٌ : تَحْرِيمُ اللَّعِبِ بِالنَّرْدَشِيرِ 2260)
“जिस व्यक्ति (शख्स) ने नरद्शीर (चौसर) खेला तो गोया कि उसने अपना हाथ सुअर के गोश्त और खून में रंग लिया।”( सही मुस्लिम: 2260)
और सुनन अबी-दाऊद की रिवायत है, रावी हदीस हज़रत अबू-मूसा अशअरी रजि़अल्लाहो अन्हो बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैेहि वसल्लम ने फरमाया:-
” مَنْ لَعِبَ بِالنَّرْدِ فَقَدْ عَصَى اللَّهَ وَرَسُولَهُ “.(سنن أبي داؤد، أَوْلُ كِتَابِ الْأَدَبِ | بَابٌ : فِي النَّهْيِ عَنِ اللَّعِبِ بِالنَّرْدِ ،4938 و حسنہ الألبانی)
“जिस व्यक्ति ने भी नर्दशीर (चौसर, गोटी, पाशा) के साथ खेला तो यकीनन उसने अल्लाह और उसके रसूल की नाफरमानी की।” ( सुनन अबी- दाऊद:4938)
और मुस्नद अहमद में हज़रत अबू – मूसा अशअरी रजि़अल्लाहु अनहो से रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुना:-
” لَا يُقَلِّبُ كَعَبَاتِهَا أَحَدٌ يَنْتَظِرُ مَا تَأْتِي بِهِ، إِلَّا عَصَى اللَّهَ وَرَسُولَهُ “.(مسند أحمد، أَوَّلُ مُسْنَدِ الْكُوفِيِّينَ. | حَدِيثُ أَبِي مُوسَى الْأَشْعَرِيِّ. 19649 حكم الحديث: حديث حسن)
“जो कोई भी नर्दशीर (चौसर) की गोटी को उलटता पलटता है और फिर उसके रिज़ल्ट (नतीजे) का इंतजार करता है तो यकी़नन उसने अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी की।”
इसी प्रकार सहाबा किराम रजि़अल्लाहु अनहुम भी नर्दशीर खेल (चौसर) को बहुत नापसंद करते थे और इसके खेलने वाले को बहुत बुरा समझते थे और उसके साथ सख्ती से पेश आते थे। जैसा कि हज़रत उस्मान बिन अफ्फान रजि़अल्लाह अनहो से रिवायत है वह कहते हैं कि :-
“ولقد هممت أن آمر بحزم الحطب ثم أرسل إلى بيوت الذين هي في بيوتهم فأحرقها عليهم”(الجامع لشعب الإيمان للبيىهقي (ح.6088) 8/464)
“मेरा इरादा है कि मैं लकड़ियों का गठ्ठर जमा करने का हुक्म दूं , फिर मैं उसे ऐसे घरों के पास भेजूं जिनके यहां नर्दशीर (चौसर) है और उन घरों को घर वालों समेत आग लगा दूं।।”
और मुवत्ता इमाम मालिक में नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पत्नी हज़रत आयशा रजि अल्लाह अनहा से रिवायत है:-
عَنْ عَائِشَةَ زَوْجِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، أَنَّهُ بَلَغَهَا أَنَّ أَهْلَ بَيْتٍ فِي دَارِهَا كَانُوا سُكَّانًا فِيهَا، وَعِنْدَهُمْ نَرْدٌ، فَأَرْسَلَتْ إِلَيْهِمْ : لَئِنْ لَمْ تُخْرِجُوهَا، لَأُخْرِجَنَّكُمْ مِنْ دَارِي، وَأَنْكَرَتْ ذَلِكَ عَلَيْهِمْ.(مؤطا مالك كِتَابٌ : الْجَامِعُ | مَا جَاءَ فِي النَّرْدِ 2753)
حكم الحديث: حسن الإسناد موقوفا.)
“उन्हें यह खबर पहुंची कि उनके घर में रहने वाले किराएदारों के पास नर्दशीर है, तो उन्होंने उनके पास यह पैग़ाम भेजा कि अगर तुमने उसे बाहर नहीं निकाला तो मैं तुम सबको अपने घर से निकाल दूंगी। और उन्होंने उन घर वालों पर सख्त नकीर की (फटकार लगाई) ।।
अब सवाल यह है कि नर्दशीर कौन सा खेल है?? जिस के बारे में शरीअत का इतना सख्त हुक्म है!!
यह चौसर, शतरंज और लूडो की तरह एक खेल है जिसे कुछ लोग दो-चार की शक्ल में समूह बनाकर खेलते हैं और लूडो की तरह इसमें भी कुछ छोटी छोटी गोटियां और एक बड़ी गोटी होती है जिस पर लूडो के गोटी की तरह बिन्दु और निशान बने होते हैं।। अौर इस में भी बिल्कुल लूडो की तरह एक या दो गोटी फेंकी जाती है और फिर जो नंबर आता है उसी के मुताबिक छोटी गोटियां आगे बढ़ाई जाती है। अतः नर्दशीर का खेल बिल्कुल लूडो और शतरंज की तरह है।
इसलिए उलमा ए किराम ने लूडो को भी नर्दशीर (चौसर) के हुक्म में रखा है और इसको पूरे तौर पर हराम क़रार दिया है।
इसके अतिरिक्त लूडो के अंदर खेलकूद के इस्लामी नियमों व कानून का खुला उल्लंघन होता है, जैसे:-
लूडो में जीत का दारोमदार इंसान की अपनी किस्मत और उस पांसे व गिट्टी पर होती है और उसमें उसकी सलाहियत का कोई अमल दखल नहीं होता । और उलमा का इस बात पर इत्तफाक़ है कि जिस खेल में जीत का दारोमदार इंसान की अपनी सलाहियत पर न हो बल्कि केवल कि़स्मत पर हो तो उस तरह का हर एक खेल नाजायज़ और हराम है, क्यों कि इस तरह का खेल जुवा की तरफ ले जाता है”।
इसी तरह लूडो में वक्त की बर्बादी भी है, और इसमें किसी तरह का कोई जिस्मानी वर्जि़श नहीं बल्कि यह खेल तफ़रीह के बजाय दिमागी़ थकावट का ज़रिया है ; इसलिए लूडो खेलना नाजायज़ और हराम है।
(यही हुक्म तीन पत्ती, सांप सीढ़ी, पब्जी गेम और पतंगबाजी का भी है)
इस के बिलमुका़बिल उलमा ने कैरम खेलने की इजाज़त दी है क्योंकि इसमें निशाना लगाने का एक तरह से अभ्यास (मश्क) होता है, और जीत का दारोमदार इंसान की अपनी सलाहियत व का़बिलियत पर होता है। लेकिन अगर इसमें भी ऊपर बयान किए गए नियम व क़वानीन का उल्लंघन (खिलाफ वर्जी) होने लगे तो यह खेल भी नाजायज़ और हराम खेल में शामिल हो जाएगा।
अल्लाह तआला से दुआ है कि हम तमाम लोगों को हराम और नाजायज़ खेलकूद से दूर रखे। आमीन
السلام علیکم
محترم لوڈو کے بارے یہ بیان کہ اس میں ہارجیت کا مدار قسمت پر ہے محل نظر نہیں ہے؟؟