लेखक: ज़फर आगा़
अनुवादक: सालिम खुर्शीद
ऐसी राजनीतिक अवस्था में क्यों मोदी जी या बीजेपी को कोरोना महामारी की चिंता हो सकती है। जनता मर रही है, मरे। बेरोजगारी से भुखमरी फैले तो फैले, चिंता किस बात की।
महाशय आप अमिताभ बच्चन की परिस्थितियों से पूर्णतः परिचित हैं। उन्होंने ताली पीटी, थाली बजायी, नरेंद्र मोदी के आदेश पर दिया जलाया, परिवार के संग बालकनी में खड़े होकर “गो कोरोना गो कोरोना” के नारे लगाए, और हुआ क्या। वो अपने परिवार समेत कोरोना संक्रमित होकर अस्पताल पहुंच गए। अरे फिल्मी लोगों को तो जाने दीजिए, महान से महान भगवान के पुजारी भी कोरोना महामारी से नहीं बच पा रहे हैं। थोड़ा विचार कीजिए, वह बालाजी जिनके मंदिर में हजारों लोग प्रतिदिन जाकर विनती करते हैं, उस मंदिर के सबसे भव्य पुजारी कोरोना के चंगुल में ऐसे फँसे कि भगवान को प्यारे हो गए। सारांश यह कि, यह कोरोना की महामारी ऐसी है कि जिसके आगे ना ही राजा, प्यादा और ना ही भव्य भगवान की चलती दिखाई दी है। बस यह कहिए कि संसार में इस महामारी का भय बढ़ता ही जा रहा है और किसी भी मनुष्य की समझ में नहीं आ रहा कि अब वह करे तो करे क्या। वास्तविकता यह है कि हर कोई इस महामारी के आगे लाचार है।
इधर कोरोना है कि किसी तरह समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है, भले ही हमारे समाचार पत्र एवं टीवी प्रतिदिन इस महामारी पर मोदी जी की विजय की घोषणा कर रहे हों। परिस्थित यह है कि प्रतिदिन यह बढ़ता ही जा रहा है, बल्कि परिस्थिति प्रतिदिन खराब होती ही चली जा रही है। अभी दो दिन पूर्व अपने पैतृक जन्मभूमि इलाहाबाद फोन किया तो पता चला कि वहां भी कोरोना बहुत गति से फैल रहा है। वह उत्तर प्रदेश जो पहले लगभग “कोरोना मुक्त” जाना जाता था, उसकी परिस्थिति अब तेज़ी से खराब होती जा रही है। वहां भी लॉकडाउन फिर से प्रारंभ हो गया है। पड़ोस में बिहार की यह अवस्था है कि कोरोना वार्ड में मृतक एवं संक्रमी साथ साथ लेटे हुए हैं और कोई पूछने वाला नहीं है। उधर हैदराबाद में एक पत्रकार से बातचीत हुई तो वह कह रहे थे कि कब्रिस्तानो और श्मशान घाटों में स्थान नहीं मिल रहे हैं। अपने दिल्ली ही में पूर्व सप्ताह दो-तीन दिन शुभ समाचार आए, फिर पता चला कि यहां तो हर चार में एक व्यक्ति कोरोना संकर्मण है। हिंदुस्तान में इस मामले में सत्य पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। क्योंकि मीडिया बिक चुका है। अभी कुछ दिन पूर्व केजरीवाल ने दिल्ली के सभी समाचार पत्रों और टीवी चैनलों को बड़ी बड़ी सूचना दी, बस इसके दूसरे दिन दिल्ली की अवस्था समाचार पत्रों में ठीक हो गई, परंतु तीसरे दिन फिर अवस्था खराब हो गई। सारांश यह कि, परिस्थितियां बहुत मृदुल हैं और दिन प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं। विदेशी माध्यम के अनुसार अगले वर्ष के आरंभ तक हिंदुस्तान में इस महामारी में दस करोड़ से अधिक मानव ग्रस्त हो जाएंगे। इस दशा में कुछ समझ में नहीं आता कि करें क्या, जाएं कहां, और आगे होगा क्या!
इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है, परंतु एक ही मार्ग है और वह यह है कि केंद्रीय एवं सरकारें एकत्रित होकर गंभीरता से इस महामारी से सुरक्षा पाने की कोई कूटनिति बनाएं। परन्तु खेद है कि अब सरकारों को तो कोरोना महामारी की चिंता ही नहीं रह गई है। मोदी जी अपनी संपूर्ण शक्ति और ध्यान तो राजस्थान सरकार में लगाए हुए हैं। ऐसे में कोरोना कि किस को चिंता! बस “मीडिया मैनेजमेंट” हो रहा है। टीवी चैनल्स प्रतिदिन कोरोना पर मोदी जी की विजय के गीत गाए जा रहे हैं। समाचार पत्र असत्य- सत्य कर रहे हैं। सरकारी शासन प्रतिदिन समाचार पत्रों में अपने अपने मुख्यमंत्री की फोटो के साथ कोरोना पर उनकी विज्यी की कथा विज्ञापन के रूप में छाप रहे हैं। किसी को मानव और महामारी की चिंता ही नहीं है।
इन परिस्थितियों में बस यह मान लीजिए कि अगले चार-पांच माह में यह महामारी हिंदुस्तान में प्रकोप गिराने वाली है। सरकारों को कोई चिंता ही नहीं है। सत्य तो यह है कि सरकारें बस अंधेरे में हाथ-पांव चला रही हैं। केंद्रीय सरकार को ही ले लीजिए,इसकी आरंभ से अब तक कोई स्पष्ट कूटनिति इस बारे में रही ही नहीं। जब मार्च में कोरोना का प्रकोप प्रचलित हुआ तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संव्य टीवी पर देश को संबोधित करके लॉक डाउन की घोषणा की। तत्पश्चात वह लाक डाउन उन्होंने दो बार और बढ़ाया। उस समय कूटनिति यह थी कि अगर सब कुछ बंद तो कोरोना भी बंद। परंतु वहां मीर तकी मीर की कहावत के अनुसार “उल्टी ही हो गईं सब तदबीरें, कुछ ना दवा में काम किया”
लॉकडाउन के कारण कोरोना महामारी फैलती ही गई। और तो और, देश की अर्थव्यवस्था नष्ट हो गई। अवस्था इतनी खराब हुई कि भूखे प्यासे कर्मचारी बड़े-बड़े नगर त्याग करके अपने जन्म भूमि की ओर पैदल प्रस्थान कर गए। देश में हाहाकार मच गया। काम धंधे सब चौपट हो गए। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। ना कोरोना रुका और ना ही अर्थव्यवस्था में कोई सुधार आया।
अब मोदी सरकार को समझ में आया कि लाख डाउन तो बहुत भारी पड़ गया है। लीजिए, एक बार फिर मोदी जी स्वयं टीवी पर देश को संबोधित करने आगए। अब “अनलॉक” का हल्ला हुआ। निकलो लेकिन मास्क लगाकर, काम काज करो परन्तु सोशल दूरी भी बनाये रखो। स्पष्ट था कि अब सरकार को मानव के जीवन से अधिक अर्थव्यवस्था की सुरक्षा करने की चिन्ता थी। इस आधुनिक कूटनिति के अंतर्गत कोरोना को तो बढ़ना ही बढ़ना था, वह संपूर्ण हुआ। परंतु अर्थव्यवस्था नहीं सुधरी। अथवा जान से भी गए और धन से भी गए। जी हां, अब फिर लॉक डाउन लगाने के विचार हो रहे हैं। इधर अर्थव्यवस्था है कि दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। अभी हम बाजार गए तो देखते हैं कि प्रत्येक दूसरी तीसरी दुकान पर ताला लगा है। प्रश्न किया कि यह क्यों नहीं खोल रहे हैं, तो पता चला कि कोई ग्राहक ही नहीं। दुकान खोलें तो विद्युत एवं जल का व्यय अलग, ऐसे में घर पर रहने में होशियारी है। परंतु मोदी जी की बला से, बीजेपी को संतुष्टि है। इसको विश्वास है कि हिंदुस्तान भूखा मरे या कोरोना में जीवन नर्क होए, अन्त में वोट तो वह मोदी जी के संकेत पर ही देगा। बीजेपी जान रही है कि मोदी जी के पास अंग्रेजों का “फूट डालो और राज करो” की प्राचीन विधि है। इस देश में हिंदू- मुस्लिम करवाइए और राज कीजिए। और फिर मोदी जी हर इलेक्शन से पूर्व एक शत्रु खोज ही लेते हैं। सन २०१९ में पाकिस्तान था, अब चीन प्राप्त हो ही गया है, भले ही हिंदुस्तानी धरती चीन के वश में हो, टीवी पर तो हिंदुस्तान की विजय के उत्सव मनाये जा रहे हैं। मूर्ख हिंदुस्तानी लाख भूखा मरे, मोदी जी के शासन में हिंदुस्तान की विजय के नाम पर फिर वोट डालने को मान ही जाएगा।
ऐसी राजनीतिक अवस्था में क्यों मोदी जी या बीजेपी को कोरोना महामारी की चिंता हो सकती है। जनता मर रही है तो मरे, बेरोजगारी से भुखमरी फैले तो फैले, चिंता किस बात की! बस यह समझ लीजिए कि हिंदुस्तान पर आने वाले समय में मौत और भूख का अशुभ साया रहेगा। इधर बेहिस सरकार को कोई चिंता नहीं, हिंदुस्तानी मरे या जिए।
Leave a Reply